गुर्जर प्रतिहार वंश का शासन छठवीं से दसवीं शताब्दी तक रहा है। प्रारंभ में इनकी शक्ति का केंद्र मंडोर (मारवाड़) व भीनमाल (जालौर) क्षेत्र था, उसके बाद उज्जैन व तथा कन्नौज को बनाया।
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा की वर्णन रचना “सी-यू-की” में गुर्जर प्रदेश की राजधानी पीलोभोलो (भीनमाल) को बताया है।
गुर्जर प्रतिहार शब्द दो शब्दों (१) गुर्जर शब्द गुर्जरात्र प्रदेश तथा (२) प्रतिहार शब्द राजा के महलों के बाहर रक्षक (द्वारपाल) का कार्य करने वाली जाति या पद से लिया गया है। इन्हें लक्ष्मण जी का वंशज मानते हैं।
मुंहणौत नैणसी ने गुर्जर प्रतिहारो की 26 शाखाओं का वर्णन किया है। सबसे महत्वपूर्ण व प्राचीन शाखा मंडोर की है।
हरिश्चंद्र :-
जोधपुर के घटियाला शिलालेख के अनुसार हरिश्चंद्र नामक एक ब्राह्मण जिसे रोहिलध्दि कहते थे, इसकी दो पत्नियां एक ब्राह्मण दूसरे क्षत्रिय थी।हरिश्चंद्र को प्रतिहारो का आदि पुरुष/ गुरु /संस्थापक तथा मूल पुरुष कहते हैं।
रज्जिल :-
रज्जिल, हरिश्चंद्र के बाद 560 ईसवी में मंडोर का शासक बना। रजील ने मंडोर को राजधानी बनाकर प्रतिहार राजवंश की स्थापना की।
नरभट्ट :-
नरभट्ट ने रोहिसकूप नगर में विष्णु मंदिर बनवाया तथा पिल्लापणी की उपाधि धारण की।
नागभट्ट प्रथम :-
नागभट्ट प्रथम ने मेड़ता को जीतकर अपनी राजधानी मंडोर से मेड़ता को बनाया। झोट प्रतिहार :- नागभट्ट प्रथम – भोज – शीलुंक के बाद झोट प्रतिहार राजा बना। झोट प्रतिहार को वीणा वादन का ज्ञान था।
कक्क :- कक्क प्रतिहार व्याकरण, ज्योतिष में विद्वान था।
बाउक :- बाउक ने 837 ई. में मंडोर के विष्णु मंदिर में अपने वंश के वर्णन की एक प्रशस्ति लगवायी।
कुक्कुक :-
कक्कुक ने दो शिलालेखों का निर्माण कराया जिन्हें घटियाला शिलालेख कहते हैं।कक्कुक को दानवीर तथा प्रतिहार वंश का कर्ण कहते हैं।
नागभट्ट प्रथम :-
नागभटृ प्रथम ने प्रतिहार वंश की भीनमाल (जालौर) शाखा या रघुवंशी प्रतिहार शाखा की जालौर में नींव रखी तथा राजधानी भीनमाल को बनाया। इसे नागवलोक तथा इसके दरबार को नागवलोक दरबार कहते थे।
नागभट्ट प्रथम को नारायण की मूर्ति का प्रतीक, क्षत्रिय ब्राह्मण आदि कहते हैं। ग्वालियर अभिलेख के अनुसार नागभट्ट प्रथम ने अरबी (मलेच्छ) सेना को हराया। ऐहोल अभिलेख के अनुसार नागभट्ट प्रथम को प्रतिहार साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।
वत्सराज (783-795 ई.) :-
देवराज जिसे अवंति का शासक कहां गया वत्सराज उसका पुत्र था। वत्सराज को रणहस्तिन की उपाधि दी गई।भागवत धर्म को संरक्षण देने के कारण जयवराह की उपाधि दी गई।
647 ई. में वत्सराज ने कन्नौज पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया। राधनपुर व वनी – डिंडोरी शिलालेखों के अनुसार राष्ट्रकूट वंश के शासक ध्रुव प्रथम ने जालौर पर आक्रमण कर वत्सराज को पराजित कर दिया, वत्सराज प्रतिहार ने मरुस्थल में शरण ली।
वत्सराज प्रतिहार के समय कुवलय माला ग्रंथ तथा हरिवंश पुराण नामक ग्रंथों की रचना हुई। वत्सराज के पुत्र नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज राज्य पर आक्रमण कर जीत लिया।
मुण्डेर युद्ध में धर्मपाल को पराजित कर महाराजाधिराज, परमेश्वर, परम भट्टारक की उपाधि धारण।
प्रभावक चरित्र ग्रंथ के अनुसार 23 अगस्त 833 ई. में नागभट्ट द्वितीय ने गंगा में जल समाधि ली।
मिहीरभोज प्रथम (836 – 885 ई.)
मिहीरभोज प्रथम, रामभद्र का पुत्र था। ग्वालियर प्रशस्ति के अनुसार मिहीरभोज प्रथम ने अपने पिता रामभद्र की हत्या कर राजा बना था इसलिए इसे प्रतिहारो में पितृहन्ता कहा जाता है।
मिहीरभोज प्रथम भगवान विष्णु का उपासक था इन्हें आदि वराह व प्रभास पाटन उपाधियां दी गई, उन्होंने श्रीमद आदिवराह लिखें चांदी व तांबे के सिक्के चलाए।
महेंद्रपाल प्रथम (885 – 910 ई.)
महेन्द्रपाल प्रथम को निर्भय नरेश, रघुकुल चुड़ामणि, महिशपाल तथा महेंद्रायुध आदि नामों से जाना जाता था। इनके राज्य कवि राजशेखर ने कर्पूर मंजरी, काव्यमीमांसा, बाल रामायण, बाल भारत तथा हरविलास ग्रंथों की रचना की।
प्रतिहार वंश का अंतिम शासक यशपाल था। इस प्रकार प्रतिहारों के साम्राज्य का 1093 ई.मे में पतन हो गया।